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ब॒ह्वी॒नां पि॒ता ब॒हुर॑स्य पु॒त्रश्चि॒श्चा कृ॑णेति॒ सम॑नाव॒गत्य॑। इ॒षु॒धिः सङ्काः॒ पृत॑नाश्च॒ सर्वाः॑ पृ॒ष्ठे निन॑द्धो जयति॒ प्रसू॑तः ॥४२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब॒ह्वी॒नाम्। पि॒ता। ब॒हुः। अ॒स्य॒। पु॒त्रः। चि॒श्चा। कृ॒णो॒ति॒। सम॑ना। अ॒व॒गत्येत्य॑व॒ऽगत्य॑। इ॒षु॒धिरिती॑षु॒ऽधिः। सङ्काः॑। पृत॑नाः। च॒। सर्वाः॑। पृ॒ष्ठे। निन॑द्ध॒ इति॒ निऽन॑द्धः। ज॒य॒ति॒। प्रसू॑त इति॒ प्रऽसू॑तः ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर पुरुषो ! जो (बह्वीनाम्) बहुत प्रत्यञ्चाओं का (पिता) पिता के तुल्य रखनेवाला (अस्य) इस पिता का (बहुः) बहुत गुणवाले (पुत्रः) पुत्र के समान सम्बन्धी (पृष्ठे) पिछले भाग में (निनद्धः) निश्चित बँधा हुआ (इषुधिः) बाण जिस में धारण किये जाते वह धनुष् (प्रसूतः) उत्पन्न हुआ (समना) संग्रामों को (अवगत्य) प्राप्त होके (चिश्चा) चिं चिं, चिं ऐसा शब्द (कृणोति) करता है (च) और जिससे वीर पुरुष (सर्वाः) सब (सङ्काः) इकट्ठी वा फैली हुई (पृतनाः) सेनाओं को (जयति) जीतता है, उसकी यथावत् रक्षा करो ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अनेक कन्याओं और बहुत पुत्रों का पिता अपत्य शब्द से संयुक्त होता है, वैसे ही धनुष्, प्रत्यञ्चा और बाण मिलकर अनेक प्रकार के शब्दों को उत्पन्न करते हैं। जिसके वाम हाथ में धनुष्, पीठ पर बाण, दाहिने हाथ से बाण को निकाल के धनुष् की प्रत्यञ्चा से संयुक्त कर छोड़ के अभ्यास से शीघ्रता करने की शक्ति को करता है, वही विजयी होता है ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बह्वीनाम्) ज्यानाम् (पिता) पितृवद्रक्षकः (बहुः) बहुगुणः (अस्य) (पुत्रः) सन्तान इव सम्बन्धी (चिश्चा) चिश्चिश्चेति शब्दं (कृणोति) करोति (समना) संग्रामान्। अत्राकारादेशः (अवगत्य) (इषुधिः) इषवो धीयन्ते यस्मिन् सः (सङ्काः) समवेता विकीर्णा वा (पृतनाः) सेनाः (च) (सर्वाः) (पृष्ठे) पश्चाद्भागे (निनद्धः) निश्चयेन नद्धो बद्धः (जयति) (प्रसूतः) उत्पन्नः ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीराः ! यो बह्वीनां पितेवास्य बहुः पुत्र इव पृष्ठे निनद्ध इषुधिः प्रसूतः सन् समनावगत्य चिश्चा कृणोति, येन वीरः सर्वा सङ्काः पृतनाश्च जयति, तं यथावद् रक्षत ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽनेकासां कन्यानां बहूनां पुत्राणां च पिताऽपत्यशब्दैः संकीर्णो भवति, तथैव धनुर्ज्येषुधयः संमिलिता अनेकविधशब्दान् जनयन्ति, यस्य वामहस्ते धनुः पृष्ठे इषुधिर्यो दक्षिणेन हस्तेनेषुं निःसार्य्य धनुर्ज्यया संयोज्य विमुच्याऽभ्यासेन शीघ्रकारित्वं करोति, स एव विजयी भवति ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अनेक पुत्र व कन्या यांना (पित्याचे) अपत्य म्हटले जाते तसे धनुष्य, प्रत्यञ्चा व बाण मिळून अनेक प्रकारचे शब्द उत्पन्न करतात. जो डाव्या हातात धनुष्य, पाठीवर बाण व उजव्या हातात धनुष्य घेऊन प्रत्यंचेला जोडून बाण मारण्याचा अभ्यास करतो त्यालाच विजय प्राप्त होतो.